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आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर - यगाना चंगेज़ी कविता - Darsaal

आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर

आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर

शम-ए-इस्मत को भरी महफ़िल में उर्यां देख कर

दिल को बहलाते हो क्या क्या आरज़ू-ए-ख़ाम से

अम्र-ए-नामुमकिन में गोया रंग-ए-इम्काँ देख कर

क्या अजब है भूल जाएँ अहल-ए-दिल अपना भी दर्द

हुस्न-ए-मस्ताना को आख़िर में पशीमाँ देख कर

ढूँडते फिरते हो अब टूटे हुए दिल में पनाह

दर्द से ख़ाली दिल-ए-गब्र-ओ-मुसलमाँ देख कर

दिल जला कर वादी-ए-ग़ुर्बत को रौशन कर चले

ख़ूब सूझी जल्वा-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ देख कर

इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ

आइने को आइना हैराँ को हैराँ देख कर

पैरहन में क्या समा सकता हबाब-ए-जाँ-ब-लब

हस्ती-ए-मौहूम का ख़्वाब-ए-परेशाँ देख कर

सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है

अपने बस का काम कर लेता हूँ आसाँ देख कर

और क्या होती 'यगाना' दर्द-ए-इसयाँ की दवा

क्या ग़ज़ल याद आई वल्लाह फ़र्द-ए-इसयाँ देख कर

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