कोई सूरत से गर सफ़ा हो
कोई सूरत से गर सफ़ा हो
आइना-ए-दिल ख़ुदा-नुमा हो
माशा-अल्लाह चश्म-ए-बद-दूर
क्या ख़ूब जवान-ए-मह-लक़ा हो
मुंसिफ़ हों शैख़-ओ-गब्र दिल में
क़िस्सा चुक जाए फ़ैसला हो
दोज़ख़ को भी मात कर दिया है
ऐ सोज़िश-ए-दिल तिरा बुरा हो
मसनद कैसी फ़क़ीर हूँ मैं
थोड़ी सी जगह हो बोरिया हो
कहते हैं वो मेरे देखने पर
देखो कोई न देखता हो
मालूम हैं वाइ'ज़ों की बातें
उस से कहें जो न जानता हो
यारो समझाओ उस सनम को
कैसे तुम बंदा-ए-ख़ुदा हो
गुलचीं मुमकिन है फूल तोड़े
बुलबुल नाला भी जानता हो
किस से मिलता है देख ऐ दिल
ग़ाफ़िल ऐसा न हो दग़ा हो
सुन ले कभी मुझ फ़क़ीर की भी
अल्लाह करे तिरा भला हो
ये हाल है नक़्द-ए-दिल को खो कर
जैसे कोई लुटा हुआ हो
उल्टी उल्टी न क्यूँ हों बातें
टेढ़ी टेढ़ी है ख़फ़ा ख़फ़ा हो
बंदा बाहर कभी नहीं है
जब चाहे अजल का सामना हो
अल्लाह करे नामा-ए-अमल पर
तेरा नक़्शा खिंचा हुआ हो
ऐ यार कभी तो काम आओ
इतनी मुद्दत की आश्ना हो
अबरू से चश्म से निगह से
आफ़त हो क़हर हो बला हो
कब से उम्मीद-ओ-बीम में हैं
जो कुछ होना हो या ख़ुदा हो
कुछ रहम भी है ख़ुदा ख़ुदा कर
बंदे से सब्र ता कुजा हो
पढ़ते हो 'सबा' बुतों का कलिमा
कहने को बंदा-ए-ख़ुदा हो
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