इश्क़ का इख़्तिताम करते हैं
इश्क़ का इख़्तिताम करते हैं
दिल का क़िस्सा तमाम करते हैं
क़हर है क़त्ल-ए-आम करते हैं
तर्क तुर्की तमाम करते हैं
ताक़-ए-अबरू से उन के दर-गुज़रे
हम यहीं से सलाम करते हैं
शैख़ उस से पनाह माँगते हैं
बरहमन राम राम करते हैं
जौहरी पर तिरे दुर-ए-दंदाँ
आब-ओ-दाना हराम करते हैं
ख़त्त-ए-क़िस्मत पढ़ा नहीं जाता
सिर्फ़ मंतिक़ तमाम करते हैं
या इलाही हलाल हों वाइ'ज़
दुख़्त-ए-रज़ हराम करते हैं
आप की मुँह लगी है दुख़्तर-ए-रज़
बातें होंटों से जाम करते हैं
चली दुनिया से हम प-ए-उक़्बा
कूच भर मक़ाम करते हैं
अपने दिल पर है इख़्तियार हमें
मुल्क का इंतिज़ाम करते हैं
क़ाबिल-ए-गुफ़्तुगू रक़ीब नहीं
आप किस से कलाम करते हैं
रात भर मेरे नाला-ए-पुर-दर्द
नींद उन की हराम करते हैं
ज़ुल्म ही अहमक़ों की मुँह-ज़ोरी
तंग ये बे-लगाम करते हैं
दिल से रंग-ए-दुई मिटाते हैं
ज़ख़्म का इल्तियाम करते हैं
ऐ 'सबा' क्यूँ किसी का दिल तोड़ें
का'बे का एहतिराम करते हैं
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