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दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है - वज़ीर अली सबा लखनवी कविता - Darsaal

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

दीदा-ए-तर अयाग़ किस का है

मय-कदा सेहन-ए-बाग़ किस का है

साग़र-ए-गुल अयाग़ किस का है

दाग़ चमका चली नसीम-ए-बहार

ये हवा में चराग़ किस का है

क्यूँ कहें ज़ुल्फ़-ए-यार को सुम्बुल

याँ परेशाँ दिमाग़ किस का है

दिल-ए-पुर-दाग़ की यही है बहार

न खुले ख़ाना बाग़ किस का है

नासेहा मग़्ज़ क्यूँ फिराता है

चल तिरा सा दिमाग़ किस का है

चार उंसुर के सब तमाशे हैं

वाह ये चार-बाग़ किस का है

अर्श-ए-आली पे फ़िक्र-ए-आली है

हम ने पाया सुराग़ किस का है

किस का मस्कन है सीना-ए-आरिफ़

दिल-ए-रौशन चराग़ किस का है

जेब-ए-गुल किस पे चाक रहता है

दिल में लाले के दाग़ किस का है

दीन-ओ-दुनिया को तर्क कर बैठे

और नाम इनफ़िराग़ किस का है

ऐ जुनूँ तेरे वास्ते सब हैं

बाग़ किस का है राग़ किस का है

यार अल्लाह रे तेरा आलम

देख ये दिल में दाग़ किस का है

माह-रू और भी हैं दुनिया में

यूँ फ़लक पर दिमाग़ किस का है

ऐ 'सबा' इस ज़मीं में ऐसे शेर

ऐसा आली दिमाग़ किस का है

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