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दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज - वज़ीर अली सबा लखनवी कविता - Darsaal

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

पैदा किया है हम को ख़ुदा ने बरा-ए-रंज

हासिल किसी से कुछ नहीं होता सिवा-ए-रंज

दुनिया में लाई है हमें क़िस्मत बरा-ए-रंज

आदम से बाग़-ए-ख़ुल्द छुटा हम से कू-ए-यार

वो इब्तिदा-ए-रंज है ये इंतिहा-ए-रंज

मुमकिन नहीं है आए जो बू-ए-गुल-ए-नशात

ऐसे दिमाग़-ए-जाँ में भरी है हवा-ए-रंज

झिड़की दे गालियाँ दे सितमगर ज़लील कर

काफ़िर हो ऐ सनम जो ज़रा दिल में लाए रंज

हम नख़्ल-ए-आह से चमन-ए-रोज़गार में

बाँधा किए हवा पए नश्व-ओ-नुमा-ए-रंज

ऐ सान-ए-अज़ल मिरी मिट्टी ख़राब की

क्या चाहिए थी ख़ाना-ए-दिल में बिना-ए-रंज

सब दोस्त अपनी हाल में हैं आप मुब्तला

किस से कहूँ मैं कौन सुने माजरा-ए-रंज

हम बार-ए-इश्क़ के मुतहम्मिल न हो सके

बस दिल पकड़ के बैठ गए वो उठाए रंज

हैं सिक्का-हा-ए-दाग़ हज़ारों भरे हुए

क़स्र-ए-दिल-ए-फ़क़ीर है दौलत सरा-ए-रंज

भूली नहीं नसीब के लिक्खे की ख़ूबियाँ

तहरीर लौह-ए-दिल पे है सब माजरा-ए-रंज

मुमकिन नहीं मिज़ाज रहे एक हाल पर

गह आश्ना-ए-ऐश हैं गह आश्ना-ए-रंज

अच्छे ये क़हक़हे नहीं आशिक़ के हाल पर

देखो हँसी हँसी में कहीं हो न जाए रंज

होते हैं किस लिबास में अशआर-ए-दर्दनाक

बहर-ए-उरूस फ़िक्र है ज़ेबा रिदा-ए-रंज

क्या ग़म जो कू-ए-यार में होता हूँ पाएमाल

फ़र्त-ए-ख़ुशी से ख़ाक नहीं दिल में जाए रंज

कहते हैं मेरे दोस्त मिरा हाल देख कर

दुश्मन को भी ख़ुदा न करे मुब्तला-ए-रंज

सौदा-ए-इश्क़ में ये सआ'दत हुसूल है

बख़्त-ए-सियह है साया-ए-बाल-ए-हुमा-ए-रंज

अंधेर सदमा-ए-शब-ए-फुर्क़त है ऐ 'सबा'

आँधी चराग़-ए-जाँ के लिए है हवा-ए-रंज

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