Coupletss of Wazir Ali Saba Lakhnavi
नाम | वज़ीर अली सबा लखनवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Wazir Ali Saba Lakhnavi |
जन्म की तारीख | 1793 |
मौत की तिथि | 1855 |
जन्म स्थान | Lucknow |
उठा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम ने
उल्फ़त-ए-कूचा-ए-जानाँ ने किया ख़ाना-ख़राब
तुम्हारी ज़ुल्फ़ न गिर्दाब-ए-नाफ़ तक पहुँची
तू अपने पाँव की मेहंदी छुड़ा के दे ऐ महर
तिरी तलाश में मह की तरह मैं फिरता हूँ
ताइर-ए-अक़्ल को मा'ज़ूर कहा ज़ाहिद ने
साक़िया अब के बड़े ज़ोरों पे हैं हम मय-परस्त
साकिन-ए-दैर हूँ इक बुत का हूँ बंदा ब-ख़ुदा
सज दिया हैरत-ए-उश्शाक़ ने इस बुत का मकाँ
साफ़ क़ुलक़ुल से सदा आती है आमीन आमीन
रोज़ ओ शब फ़ुर्क़त-ए-जानाँ में बसर की हम ने
क़ैद-ए-मज़हब वाक़ई इक रोग ही
पाया है इस क़दर सुख़न-ए-सख़्त ने रिवाज
नहीं है हाजियों को मय-कशी की कैफ़िय्यत
न पढ़ा यार ने अहवाल-ए-शिकस्ता मेरा
मेरे बग़ल में रह के मुझी को क्या ज़लील
मेरे अशआ'र से मज़मून-ए-रुख़-ए-यार खुला
मजनूँ नहीं कि एक ही लैला के हो रहें
मय पी के ईद कीजिए गुज़रा मह-ए-सियाम
मादूम हुए जाते हैं हम फ़िक्र के मारे
क्या बनाया है बुतों ने मुझ को
कुदूरत नहीं अपनी तब्-ए-रवाँ में
ख़ुद-रफ़्तगी है चश्म-ए-हक़ीक़त जो वा हुई
ख़ाक में मुझ को मिला के वो सनम कहता है
कलेजा काँपता है देख कर इस सर्द-मेहरी को
का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर
काबा बनाइए कि कलीसा बनाइए
जब उस बे-मेहर को ऐ जज़्ब-ए-दिल कुछ जोश आता है
जब मैं रोता हूँ तो अल्लाह रे हँसना उन का
इतनी तो दीद-ए-इश्क़ की तासीर देखिए