ये किस हिसाब से की तू ने रौशनी तक़्सीम
सितारे मुझ को मिले माहताब उस का था
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तर्ग़ीब
रंग और रूप से जो बाला है
लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो
करना पड़ेगा अपने ही साए में अब क़याम
जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया
मंज़र था राख और तबीअत उदास थी
कैसे कहूँ कि मैं ने कहाँ का सफ़र किया
कोह-ए-निदा
इस गिर्या-ए-पैहम की अज़िय्यत से बचा दे
ख़ुद अपने ग़म ही से की पहले दोस्ती हम ने
सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है