ये कैसी आँख थी जो रो पड़ी है
ये कैसा ख़्वाब था जो बुझ गया है
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तर्ग़ीब
ये किस हिसाब से की तू ने रौशनी तक़्सीम
दरमाँदा
चलो अपनी भी जानिब अब चलें हम
बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया
अजब तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी हम ने
सफ़ेद फूल मिले शाख़-ए-सीम-बर के मुझे
वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र ये है
जब आँख खुली मेरी
तुम जो आते हो
समेटता रहा ख़ुद को मैं उम्र-भर लेकिन