सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र ये है
वहाँ को भूल गए और यहाँ को पहचाना
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उम्र की इस नाव का चलना भी क्या रुकना भी क्या
चलो अपनी भी जानिब अब चलें हम
जब आँख खुली मेरी
कैसे कहूँ कि मैं ने कहाँ का सफ़र किया
सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है
जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया
धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है
कोह-ए-निदा
दिन ढल चुका था और परिंदा सफ़र में था
हथेली
उम्मीद
सितारा तो कभी का जल-बुझा है