किस की ख़ुशबू ने भर दिया था उसे
उस के अंदर कोई ख़ला न रहा
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सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है
सफ़र
वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे
तुझे भी याद तो होगा
न आँखें ही झपकता है न कोई बात करता है
आहिस्ता बात कर कि हवा तेज़ है बहुत
तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को
ज़ात के रोग में
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र ये है
रात भर इक सदा
दुख मैले आकाश का
दरमाँदा