कैसे कहूँ कि मैं ने कहाँ का सफ़र किया
आकाश बे-चराग़ ज़मीं बे-लिबास थी
Anwar Masood
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(647) Peoples Rate This
थकन
धूप के साथ गया साथ निभाने वाला
दरमाँदा
सितारा तो कभी का जल-बुझा है
निरवान
तर्ग़ीब
उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना
रेज़ा रेज़ा कर जाता है
या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर
क़िस्मत ही में रौशनी नहीं थी
आवेज़िश
पहना दे चाँदनी को क़बा अपने जिस्म की