इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें
इतना न दूर जा के हमा-वक़्त पास हो
Anwar Masood
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Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Allama Iqbal
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रेत पर छोड़ गया नक़्श हज़ारों अपने
ज़ात के रोग में
किस किस से न वो लिपट रहा था
दरमाँदा
तर्ग़ीब
अंधी काली रात का धब्बा
निरवान
बंद उस ने कर लिए थे घर के दरवाज़े अगर
गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा
कितनी बार बुलाया उस को
दिन ढल चुका था और परिंदा सफ़र में था