बंद उस ने कर लिए थे घर के दरवाज़े अगर
फिर खुला क्यूँ रह गया था एक दर मेरे लिए
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धूप के साथ गया साथ निभाने वाला
आवेज़िश
न आँखें ही झपकता है न कोई बात करता है
इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें
थकन
मंज़र था राख और तबीअत उदास थी
बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ
उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के
तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को
निरवान
दुख मैले आकाश का
किस किस से न वो लिपट रहा था