अजब तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी हम ने
जहाँ में रह के न कार-ए-जहाँ को पहचाना
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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Jaun Eliya
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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रेज़ा रेज़ा कर जाता है
वो परिंदा है कहाँ शब को चहकने वाला
गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा
वो अपनी उम्र को पहले पिरो लेता है डोरी में
कितनी बार बुलाया उस को
दुख मैले आकाश का
अब दिन की बातें करते हैं
किस की ख़ुशबू ने भर दिया था उसे
इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें
समेटता रहा ख़ुद को मैं उम्र-भर लेकिन
तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल
उम्मीद