अब तो आराम करें सोचती आँखें मेरी
रात का आख़िरी तारा भी है जाने वाला
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निरवान
चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं
समेटता रहा ख़ुद को मैं उम्र-भर लेकिन
कराँ-ता-कराँ
सफ़र
उम्र भर उस ने बेवफ़ाई की
कैसे कहूँ कि मैं ने कहाँ का सफ़र किया
टीन का डिब्बा
उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के
ज़ात के रोग में
बे-सदा दम-ब-ख़ुद फ़ज़ा से डर
क़िस्मत ही में रौशनी नहीं थी