आहिस्ता बात कर कि हवा तेज़ है बहुत
ऐसा न हो कि सारा नगर बोलने लगे
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मैं और तू
सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है
बादल बरस के खुल गया रुत मेहरबाँ हुई
तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को
रेज़ा रेज़ा कर जाता है
लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो
वो अपनी उम्र को पहले पिरो लेता है डोरी में
ज़ेहन-ए-रसा की गिर्हें मगर खोलने लगे
चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं
सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना
आसमाँ पर अब्र-पारे का सफ़र मेरे लिए
तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल