पेश-गोई
हँसी खोखली सी हँसी
और पोथी पे इक हाथ रख कर
मुझे घूर कर
गुनगुनाया
यहाँ से वहाँ तक
मुझे एक भी सब्ज़ पत्ता दिखाई नहीं दे रहा
एक भी बाँसुरी की मधुर तान
पानी की गागर के नीचे छलकती हुई वहशी हिरनी सी आँखें
कोई एक चमकीला आँसू भी बाक़ी नहीं है
धुआँ राख और ख़ून
धरती की उजड़ी हुई कोख में चंद झुलसी हुई हड्डियाँ
अध जले प्रेम-पत्रों के ढाँचे
दरख़्तों की लाशें
मकानों की उड़ती हुई धज्जियाँ
सोने रस्तों पे फिरती हुई खोखली सी हवा के सिवा
और कुछ भी मुझे याँ दिखाई नहीं दे रहा
बड़ी देर तक मैं ने बूढ़े नुजूमी की बातें सुनीं
और आबाद राहों पे ख़ुश-पोश जोड़ों को आँसू की चिलमन से देखा किया
फिर अचानक
न-जाने कहाँ इक बिगुल सा बजा
और न जाने वो कैसे निकल कर मिरे सामने आ गया
एक भींगा मुड़े नाख़ुनों वाला इफ़रीत
जो पहले दिन से
मिरी आँख में छुप के बैठा हुआ था
मिरे ख़ून पर पल रहा था
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