Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_0d7f645211246a27988118fbd37ed3bd, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
अंकबूत - वज़ीर आग़ा कविता - Darsaal

अंकबूत

तह-दर-तह जंगल के अंदर

उस का इक छोटा सा घर था

और ख़ुद जंगल

शब के काले रेशम के

इक थान के अंदर

दबा पड़ा था

चुर-मुर सी आवाज़ बना था

और शब

गोरे दिन के

मकड़ी-जाल में जकड़ी

इक काली मक्खी की सूरत

लटक रही थी

मैं क्या करता

मजबूरी सी मजबूरी थी

मैं ने ख़ुद को

घर छप्पर में

उल्टा लटका देख लिया था

कितनी ही गिरहों में जकड़ा

देख लिया था

मकड़ी जाने कहाँ गई थी

अपनी तहों के अंदर शायद

फँसी हुई थी

मैं क्या जानूँ

(571) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Wazir Agha. is written by Wazir Agha. Complete Poem in Hindi by Wazir Agha. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.