वो परिंदा है कहाँ शब को चहकने वाला
वो परिंदा है कहाँ शब को चहकने वाला
रात-भर नाफ़ा-ए-गुल बन के महकने वाला
लुक्का-ए-अब्र था बस देखने आया था मुझे
कोई बादल तो नहीं था वो छलकने वाला
राख में आँख में फूलों पे कसीली शब में
बे-ज़रूरत भी तो चमका है चमकने वाला
किस की आवाज़ में है टूटते पत्तों की सदा
कौन इस रुत में है बे-वज्ह सिसकने वाला
चाँद हो रोज़ बदलते हो तुम्हारा क्या है
मैं समुंदर हूँ अबद तक न बहकने वाला
पी लिया लौट गया ख़ुश्क हुआ कुछ तो बता
क्या हुआ आँख से आँसू वो टपकने वाला
(699) Peoples Rate This