सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है
सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है
सदा अंदर सदा अंदर सदा है
ख़िज़ाँ इक ग़म-ज़दा बीमार औरत
हवा ने छीन ली जिस की रिदा है
सितारा जल-बुझा मुख़्तार था वो
दिया मजबूर था जलता रहा है
सर-ए-मिज़्गाँ उभर आना था जिस को
कहाँ वो मेहरबाँ तारा गया है
उगी हैं चार सू बातें ही बातें
अजब सी हर तरफ़ आवाज़-ए-पा है
हवा उस को उड़ा ले जा कहीं तू
ये बादल अपने पर फैला रहा है
है उर्यानी तो आदत चाँदनी की
अंधेरा बे-सबब शरमा रहा है
सितारों और शरारों में ठनी है
मोहब्बत की मगर ये भी अदा है
ये कैसी आँख थी जो रो पड़ी है
ये कैसा ख़्वाब था जो बुझ गया है
हवा अब चल पड़ी है तेरी जानिब
हवा को बादबाँ रास आ गया है
जो दिल में फाँस थी सो रह गई है
यहाँ वर्ना सभी कुछ हो गया है
(698) Peoples Rate This