सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना
सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना
ख़बर की आँच में जल कर भी बे-ख़बर रहना
सहर की ओस से कहना कि एक पल तो रुके
कि ना-पसंद है हम को भी ख़ाक पर रहना
तमाम उम्र ही गुज़री है दस्तकें सुनते
हमें तो रास न आया ख़ुद अपने घर रहना
वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें
तवील रहना भी लगता है मुख़्तसर रहना
सफ़र अज़ीज़ हवा को मगर अज़ीज़ हमें
मिसाल-ए-निकहत-ए-गुल उस का हम-सफ़र रहना
शजर पे फूल तो आते रहे बहुत लेकिन
समझ में आ न सका उस का बे-समर रहना
अजीब तर्ज़-ए-तकल्लुम है उस की आँखों का
ख़मोश रह के भी लफ़्ज़ों की धार पर रहना
वरक़ वरक़ न सही उम्र-ए-राएगाँ मेरी
हवा के साथ मगर तुम न उम्र भर रहना
ज़रा सी ठेस लगी और घर को ओढ़ लिया
कहाँ गया वो तुम्हारा नगर नगर रहना
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