Ghazals of Wazir Agha

Ghazals of Wazir Agha
नामवज़ीर आग़ा
अंग्रेज़ी नामWazir Agha
जन्म की तारीख1922
मौत की तिथि2010
जन्म स्थानSargodha

ज़ेहन-ए-रसा की गिर्हें मगर खोलने लगे

वो परिंदा है कहाँ शब को चहकने वाला

वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे

उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के

उम्र की इस नाव का चलना भी क्या रुकना भी क्या

उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल

थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था

तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को

सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है

सितारा तो कभी का जल-बुझा है

सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना

सहर ने आ कर मुझे सुलाया तो मैं ने जाना

सफ़ेद फूल मिले शाख़-ए-सीम-बर के मुझे

रंग और रूप से जो बाला है

न आँखें ही झपकता है न कोई बात करता है

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो

किस किस से न वो लिपट रहा था

ख़ुद से हुआ जुदा तो मिला मर्तबा तुझे

जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया

इस गिर्या-ए-पैहम की अज़िय्यत से बचा दे

गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा

दिन ढल चुका था और परिंदा सफ़र में था

धूप के साथ गया साथ निभाने वाला

धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है

चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं

बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया

बे-सदा दम-ब-ख़ुद फ़ज़ा से डर

बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ

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