ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत
ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत
जो ख़ुद खींच कर न आ जाए उसे मंज़िल नहीं कहते
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ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत
जो ख़ुद खींच कर न आ जाए उसे मंज़िल नहीं कहते
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