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हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते - वासिफ़ देहलवी कविता - Darsaal

हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते

हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते

रक़ीबों पर मगर वो कौन था माइल नहीं कहते

जो रंग-ए-इश्क़ से फ़ारिग़ हो उस को दिल नहीं कहते

जो मौजों से न टकराए उसे साहिल नहीं कहते

इशारा शम्अ' का समझा न परवाना तो क्या समझा

मनार-ए-राह को अहल-ए-नज़र मंज़िल नहीं कहते

ब-रंग-ए-रिश्ता-ए-तस्बीह दिल से राह है दिल को

भटक जाए जो इस जादे से उस को दिल नहीं कहते

ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत

जो ख़ुद खींच कर न आ जाए उसे मंज़िल नहीं कहते

मरीज़-ए-ग़म की ग़फ़लत भी कमाल-ए-होशियारी है

जो गुम हो जाए जल्वों में उसे ग़ाफ़िल नहीं कहते

भरम उस का ही ऐ मंसूर तू ने रख लिया होता

किसी का राज़ ऐ नादाँ सर-ए-महफ़िल नहीं कहते

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In Hindi By Famous Poet Wasif Dehlvi. is written by Wasif Dehlvi. Complete Poem in Hindi by Wasif Dehlvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.