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ये जल जाते हैं लब तक आह भी आने नहीं देते - वसीम मीनाई कविता - Darsaal

ये जल जाते हैं लब तक आह भी आने नहीं देते

ये जल जाते हैं लब तक आह भी आने नहीं देते

मदद के वास्ते आवाज़ परवाने नहीं देते

कहीं पर ज़िक्र उन का भी न आ जाए इसी डर से

वो रूदाद-ए-मोहब्बत हम को दोहराने नहीं देते

मिरे बच्चे भी मेरी ही तरह ख़ुद्दार हैं शायद

ख़याल-ए-मुफ़लिसी मुझ को कभी आने नहीं देते

चले हो मय-कशो पीने मगर तुम होश मत खोना

किसी को रास्ता घर का ये मयख़ाने नहीं देते

वो जिस के हुस्न की तारीख़ तुम ने ख़ुद ही लिक्खी थी

वही तस्वीर क्यूँ दुनिया को दिखलाने नहीं देते

'वसीम' अंसार ने ऐसे सितम ढाए मुहाजिर पर

कि हम हिजरत का लब पर नाम भी आने नहीं देते

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In Hindi By Famous Poet Waseem Minai. is written by Waseem Minai. Complete Poem in Hindi by Waseem Minai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.