उसे बहिश्त के ज़िंदाँ में भेज देना तुम
गुनाहगार-ए-मोहब्बत को ये सज़ा देना
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फूल अपने वस्फ़ सुनते हैं उस ख़ुश-नसीब से
मौत आई मुझे कूचे में तिरे जाने से
जाए आशिक़ की बला हश्र में क्या रक्खा है
क्या हुआ उस ने जो आशिक़ से जफ़ाकारी की
फ़लक बेदाद करता है जो जौर ईजाद करते हैं
नज़्अ' में प्यार से क्यूँ पूछते हो तुम मुझ को
शरीर तेरी तरह आँख भी तिरी होगी
हम ने उस शोख़ की रानाई क़ामत देखी
क़तरे गिरे जो कुछ अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के
वहाँ अब जा के देखें हम से क्या इरशाद करते हैं
भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ
कम सितम करने में क़ातिल से नहीं दिल मेरा