क्या हुआ उस ने जो आशिक़ से जफ़ाकारी की
क्या हुआ उस ने जो आशिक़ से जफ़ाकारी की
रूह ने जबकि न क़ालिब से वफ़ादारी की
लम्बी दाढ़ी भी किसी हाथ से रुस्वा होगी
हज़रत-ए-शैख़ सज़ा पाएँगे मक्कारी की
तू वो ज़ालिम है गया नाज़ से इतरा के जो वाँ
दावर-ए-हश्र ने भी तेरी तरफ़-दारी की
दाग़ रौशन मिरे सीने पे जो देखे उस ने
मोहर-ए-पुर-नूर पे भपती कही चिंगारी की
ग़म-ए-मजनूँ में सियह-पोश बनी है लैला
ऐ जुनूँ ये शब-ए-हिज्राँ की नहीं तारीकी
सुन लिया नाम वफ़ा का है किसी आशिक़ से
जान अब काहे को छोड़ेंगे वफ़ादारी की
एक तौबा के सिवा कुछ न किया हम ने 'वसीम'
अफ़्व के हाथ है अब शर्म गुनहगारी की
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