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तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा - वसीम बरेलवी कविता - Darsaal

तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा

तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा

तो मेरी आँख में आँसू नज़र न आएगा

ये ज़िंदगी का मुसाफ़िर ये बे-वफ़ा लम्हा

चला गया तो कभी लौट कर न आएगा

बनेंगे ऊँचे मकानों में बैठ कर नक़्शे

तो अपने हिस्से में मिट्टी का घर न आएगा

मना रहे हैं बहुत दिन से जश्न-ए-तिश्ना-लबी

हमें पता था ये बादल इधर न आएगा

लगेगी आग तो सम्त-ए-सफ़र न देखेगी

मकान शहर में कोई नज़र न आएगा

'वसीम' अपने अँधेरों का ख़ुद इलाज करो

कोई चराग़ जलाने इधर न आएगा

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In Hindi By Famous Poet Waseem Barelvi. is written by Waseem Barelvi. Complete Poem in Hindi by Waseem Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.