मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके
मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके
वही चराग़ बुझाए गए जो जल न सके
हम इस लिए नई दुनिया के साथ चल न सके
कि जैसे रंग ये बदली है हम बदल न सके
मैं उन चराग़ों की उम्र-ए-वफ़ा को रोता हूँ
जो एक शब भी मिरे दिल के साथ जल न सके
मैं वो मुसाफ़िर-ए-ग़मगीं हूँ जिस के साथ 'वसीम'
ख़िज़ाँ के दौर से भी कुछ दूर चल के चल न सके
(620) Peoples Rate This