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कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी - वसीम बरेलवी कविता - Darsaal

कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी

कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी

तुझ से ही फ़ासला रखना तुझे अपनाना भी

कैसी आदाब-ए-नुमाइश ने लगाईं शर्तें

फूल होना ही नहीं फूल नज़र आना भी

दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी

भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी

जाने कब शहर के रिश्तों का बदल जाए मिज़ाज

इतना आसाँ तो नहीं लौट के घर आना भी

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं

तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी

ख़ुद को पहचान के देखे तो ज़रा ये दरिया

भूल जाएगा समुंदर की तरफ़ जाना भी

जानने वालों की इस भीड़ से क्या होगा 'वसीम'

इस में ये देखिए कोई मुझे पहचाना भी

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In Hindi By Famous Poet Waseem Barelvi. is written by Waseem Barelvi. Complete Poem in Hindi by Waseem Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.