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दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो - वसीम बरेलवी कविता - Darsaal

दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो

दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो

वो ज़िंदगी ही नहीं है जो ना-तमाम न हो

जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है सदियों से

कहीं हयात उसी फ़ासले का नाम न हो

कोई चराग़ न आँसू न आरज़ू-ए-सहर

ख़ुदा करे कि किसी घर में ऐसी शाम न हो

अजीब शर्त लगाई है एहतियातों ने

कि तेरा ज़िक्र करूँ और तेरा नाम न हो

सबा-मिज़ाज की तेज़ी भी एक ने'मत है

अगर चराग़ बुझाना ही एक काम न हो

'वसीम' कितनी ही सुब्हें लहू लहू गुज़रीं

इक ऐसी सुब्ह भी आए कि जिस की शाम न हो

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In Hindi By Famous Poet Waseem Barelvi. is written by Waseem Barelvi. Complete Poem in Hindi by Waseem Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.