दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो
दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो
वो ज़िंदगी ही नहीं है जो ना-तमाम न हो
जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है सदियों से
कहीं हयात उसी फ़ासले का नाम न हो
कोई चराग़ न आँसू न आरज़ू-ए-सहर
ख़ुदा करे कि किसी घर में ऐसी शाम न हो
अजीब शर्त लगाई है एहतियातों ने
कि तेरा ज़िक्र करूँ और तेरा नाम न हो
सबा-मिज़ाज की तेज़ी भी एक ने'मत है
अगर चराग़ बुझाना ही एक काम न हो
'वसीम' कितनी ही सुब्हें लहू लहू गुज़रीं
इक ऐसी सुब्ह भी आए कि जिस की शाम न हो
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