Ghazals of Waseem Barelvi (page 2)
नाम | वसीम बरेलवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Waseem Barelvi |
जन्म की तारीख | 1940 |
जन्म स्थान | Delhi |
मेरा किया था मैं टूटा कि बिखरा रहा
मैं ये नहीं कहता कि मिरा सर न मिलेगा
मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता
मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता
लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
ख़ुशी का साथ मिला भी तो दिल पे बार रहा
खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं
कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है
कहाँ क़तरे की ग़म-ख़्वारी करे है
जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है
हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
हवेलियों में मिरी तर्बियत नहीं होती
हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो
चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है
चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे
अपने साए को इतना समझाने दे
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
अपने अंदाज़ का अकेला था
अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है