जब से मैं ने इश्क़ का पैराहन पहना है
जब से मैं ने इश्क़ का पैराहन पहना है
सूरज मुझ से आँख चुराता फिरता है
इस की बातें मुझ से तो अब पूछो ना
हाल उस का भी बिल्कुल मेरे जैसा है
कैसे उस को दिल की हालत समझाऊँ
बात करूँ तो आँख चुराने लगता है
कुछ न कहना उस की भी मजबूरी है
शर्म-ओ-हया का दामन उस ने थामा है
देख उसे सब ज़िक्र हमारा करते हैं
उस की आँख में सिर्फ़ हमारा चेहरा है
राज़-ए-मोहब्बत कैसे भला उस को लिक्खूँ
ख़त मेरा वो दोस्तों में भी पढ़ता है
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