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खेल मौजों का ख़तरनाक सही क्या मैं इस खेल से डर जाऊँगा - वाक़िफ़ राय बरेलवी कविता - Darsaal

खेल मौजों का ख़तरनाक सही क्या मैं इस खेल से डर जाऊँगा

खेल मौजों का ख़तरनाक सही क्या मैं इस खेल से डर जाऊँगा

फिर कोई लहर पुकारेगी फिर मैं दरिया में उतर जाऊँगा

ख़ूबसूरत हैं ये आँखें लेकिन क्या मैं आँखों में ठहर जाऊँगा

ख़्वाब की तरह से देखा है तुम्हें ख़्वाब की तरह बिखर जाऊँगा

शक्ल बन जाऊँगा बादल में कभी पुर्वा में उभर जाऊँगा

मैं किसी याद का झोंका बन कर तेरे आँगन से गुज़र जाऊँगा

ये मोहब्बत मुझे ताक़त देगी हौसला देगी ये हिम्मत देगी

रौशनी तेरी नज़र से ले कर हर अँधेरे से गुज़र जाऊँगा

कोई मक़्सद न कोई मुस्तक़बिल कोई साथी न है कोई मंज़िल

तुम को जाना है जहाँ तुम जाओ क्या बताऊँ मैं किधर जाऊँगा

क्यूँ नहीं मुझ को भी प्यारा है वतन है मगर सारी ज़मीं अपना चमन

किसी आँगन में खिला हूँ 'वाकिफ' किसी धरती पे बिखर जाऊँगा

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In Hindi By Famous Poet Waqif Rae Barelvi. is written by Waqif Rae Barelvi. Complete Poem in Hindi by Waqif Rae Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.