तिरी नज़र में तिरे मा-सिवा नहीं होगा
तिरी नज़र में तिरे मा-सिवा नहीं होगा
तिरे वजूद का जिस दिन तुझे यक़ीं होगा
जो घर से निकला तो हर इक को मुंतज़िर पाया
ख़याल था कि कोई जानता नहीं होगा
फ़रेब देती हैं वीरानियाँ सदा तो लगा
मकान है तो यक़ीनन कोई मकीं होगा
ख़बर न थी कि हज़ार आँखें हैं अँधेरे की
उसे ख़याल था चर्चा कहीं नहीं होगा
हरे दरख़्तों के साए से अब लरज़ता है
वो ख़ुश्क पत्तों में बैठा हुआ कहीं होगा
वो छुप गया हो किसी ख़ौफ़ से कहीं वर्ना
अभी दिखाई दिया था यहीं कहीं होगा
'वक़ार' और कहीं तो नज़र नहीं आता
अगर वो घर में नहीं है तो फिर वहीं होगा
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