सदा-ए-आफ़रीं उट्ठी थी जस्त ऐसी थी
सदा-ए-आफ़रीं उट्ठी थी जस्त ऐसी थी
ख़बर न थी कि मुक़द्दर शिकस्त ऐसी थी
नज़र हटा न सका राय किस तरह लेता
वो सब को देख रहा था नशिस्त ऐसी थी
उसे ख़याल ये गुज़रा कि गिर गई दीवार
दिल-ए-हज़ीं की सदा-ए-शिकस्त ऐसी थी
मैं तअ'ईनात के उलझाव तोड़ ही बैठा
सदा-ए-दोस्त सदा-ए-अलस्त ऐसी थी
मैं अपने आप को भी खुल के पेश कर न सका
'वक़ार' ज़ेहनियत-ए-वक़्त पस्त ऐसी थी
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