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सदा-ए-आफ़रीं उट्ठी थी जस्त ऐसी थी - वक़ार वासिक़ी कविता - Darsaal

सदा-ए-आफ़रीं उट्ठी थी जस्त ऐसी थी

सदा-ए-आफ़रीं उट्ठी थी जस्त ऐसी थी

ख़बर न थी कि मुक़द्दर शिकस्त ऐसी थी

नज़र हटा न सका राय किस तरह लेता

वो सब को देख रहा था नशिस्त ऐसी थी

उसे ख़याल ये गुज़रा कि गिर गई दीवार

दिल-ए-हज़ीं की सदा-ए-शिकस्त ऐसी थी

मैं तअ'ईनात के उलझाव तोड़ ही बैठा

सदा-ए-दोस्त सदा-ए-अलस्त ऐसी थी

मैं अपने आप को भी खुल के पेश कर न सका

'वक़ार' ज़ेहनियत-ए-वक़्त पस्त ऐसी थी

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In Hindi By Famous Poet Waqar Vasiqi. is written by Waqar Vasiqi. Complete Poem in Hindi by Waqar Vasiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.