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लबों पे शिकवा-ए-अय्याम भी नहीं होता - वक़ार सहर कविता - Darsaal

लबों पे शिकवा-ए-अय्याम भी नहीं होता

लबों पे शिकवा-ए-अय्याम भी नहीं होता

ज़बाँ पे अब तो तिरा नाम भी नहीं होता

कभी कभी उसे सोचूँ तो सोच लेता हूँ

कभी-कभार ये इक काम भी नहीं होता

ये मय-कदा है नहीं मय-कशो ये धोका है

यहाँ तो नश्शा तह-ए-जाम भी नहीं होता

नहीं ये दर्द नहीं ये ज़रूर है कुछ और

कि उस में तो मुझे आराम भी नहीं होता

वो अजनबी सा रवय्या वो दिल-शिकन अंदाज़

जब उन के होंटों पे इल्ज़ाम भी नहीं होता

तिरे बग़ैर मसाफ़त में पुल-सिरात हुआ

वो रहगुज़ार जो दो गाम भी नहीं होता

'सहर' तुम उस से मुलाक़ात कैसे करते हो

वो शख़्स अब तो लब-ए-बाम भी नहीं होता

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In Hindi By Famous Poet Waqar Sahar. is written by Waqar Sahar. Complete Poem in Hindi by Waqar Sahar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.