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सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं - वक़ार ख़ान कविता - Darsaal

सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं

सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं

तपिश-ए-हिज्र में बरसों से गिरफ़्तार हूँ मैं

जा किसी और को जा धमकियाँ दे मारने की

जब से मैं पैदा हुआ तब से सर-ए-दार हूँ मैं

मेरा पैग़ाम भला तेग़ कहाँ रोकेगी

हाकिम-ए-वक़त को बतलाओ कलम-कार हूँ मैं

मैं ने तो रब को भी पूजा है और उस यार को भी

वाइज़ा तू ही बता किस का गुनहगार हूँ मैं

मंज़िल-ए-ज़ीस्त कहाँ मंज़िल-ए-मक़्सूद 'वक़ार'

इक सुरय्या-ए-मोहब्बत का तलबगार हूँ मैं

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In Hindi By Famous Poet Waqar Khan. is written by Waqar Khan. Complete Poem in Hindi by Waqar Khan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.