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ज़िंदगी इतनी बे-मज़ा क्यूँ है - वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी कविता - Darsaal

ज़िंदगी इतनी बे-मज़ा क्यूँ है

ज़िंदगी इतनी बे-मज़ा क्यूँ है

दर्द-ओ-ग़म से ये आश्ना क्यूँ है

इस ज़माने के साथ साथ हूँ मैं

फिर मुख़ालिफ़ मिरे हवा क्यूँ है

चारागर भी न कर सके तश्ख़ीस

इश्क़ का दिल को आरिज़ा क्यूँ है

शहर में घर तो और भी थे मगर

इक हमारा ही घर जला क्यूँ है

जब वो शह-रग के है क़रीब तो फिर

मेरी नज़रों से वो छुपा क्यूँ है

हम अभी मुत्तहिद हुए भी नहीं

सारे आलम में तहलका क्यूँ है

उस के ग़म में पता चला रो कर

क़तरा-ए-अश्क बे-बहा क्यूँ है

सकते में कुफ़्र आज भी है 'वक़ार'

रहनुमा हक़ की कर्बला क्यूँ है

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In Hindi By Famous Poet Waqar Hilm Syed Naglavi. is written by Waqar Hilm Syed Naglavi. Complete Poem in Hindi by Waqar Hilm Syed Naglavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.