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मज़ा था हम को जो बुलबुल से दू-बदू करते - वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी कविता - Darsaal

मज़ा था हम को जो बुलबुल से दू-बदू करते

मज़ा था हम को जो बुलबुल से दू-बदू करते

कि गुल तुम्हारी बहारों में आरज़ू करते

मज़े जो मौत के आशिक़ बयाँ कभू करते

मसीह-ओ-ख़िज़्र भी मरने की आरज़ू करते

ग़रज़ थी क्या तिरे तीरों को आब-ए-पैकाँ से

मगर ज़ियारत-ए-दिल क्यूँकि बे-वुज़ू करते

अगर ये जानते चुन चुन के हम को तोड़ेंगे

तो गुल कभी न तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू करते

यक़ीं है सुब्ह-ए-क़यामत को भी सुबूही-कश

उठेंगे ख़्वाब से साक़ी सुबू सुबू करते

समझियो दार-ओ-रसन तार-ओ-सोज़न ऐ मंसूर

कि चाक पर वो हक़ीक़त का हैं रफ़ू करते

न रहती यूसुफ़-ए-कनआँ' की ख़ूबी-ए-बाज़ार

मुक़ाबला में जो हम तुझ को रू-ब-रू करते

चमन भी देखते गुलज़ार-ए-आरज़ू की बहार

तुम्हारी बाद-ए-बहारी में आरज़ू करते

अजब न था कि ज़माने के इंक़लाब से हम

तयम्मुम आब से तो ख़ाक से वुज़ू करते

सुराग़ उम्र-ए-गुज़िश्ता का लीजिए गर ज़ौक़

तमाम उम्र गुज़र जाए जुस्तुजू करते

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In Hindi By Famous Poet Waqar Hilm Syed Naglavi. is written by Waqar Hilm Syed Naglavi. Complete Poem in Hindi by Waqar Hilm Syed Naglavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.