Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_1fa4f5503432da1c0f74f4ad62d5b95e, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
लगता है इन दिनों के है महशर-ब-कफ़ हवा - वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी कविता - Darsaal

लगता है इन दिनों के है महशर-ब-कफ़ हवा

लगता है इन दिनों के है महशर-ब-कफ़ हवा

हैं सर-ब-कफ़ चराग़ तो ख़ंजर-ब-कफ़ हुआ

जब से चमन में रक्खा है बुलबुल ने आशियाँ

शो'ला-ब-कफ़ है बर्क़ तो अख़गर-ब-कफ़ हवा

रुख़्सार-ए-गुल के तिल से हैं हैरान ख़ुशबुएँ

है मौसम-ए-बहार में अम्बर-ब-कफ़ हुआ

इल्म-ओ-अमल से होती है किरदार की परख

एलान कर रही है ये महज़र-ब-कफ़ हवा

फ़िरऔन और अबरहा जैसों से बारहा

हर हाल ही में निबटी है लश्कर-ब-कफ़ हवा

ए'जाज़ शेर-ए-हक़ का दिखाने के वास्ते

अज़दर ब-कफ़ हुई कभी ख़ैबर-ब-कफ़ हवा

गुलशन में मुस्तक़िल जो ठिकाना नहीं मिला

सहरा नवर्द हो गई बिस्तर-ब-कफ़ हवा

दीवान-ए-बे-नुक़त से है तेरा 'वक़ार-हिल्म'

कहती है अहल-ए-फ़न से ये गौहर-ब-कफ़ हवा

(648) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Waqar Hilm Syed Naglavi. is written by Waqar Hilm Syed Naglavi. Complete Poem in Hindi by Waqar Hilm Syed Naglavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.