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माँ - वामिक़ जौनपुरी कविता - Darsaal

माँ

किस ने इन आहिनी-दरवाज़ों के पट खोल दिए

किस ने ख़ूँ-ख़्वार-दरिंदों को यहाँ छोड़ दिया

किस ने आँचल पे मिरे डाल दिए अँगारे

ठीक से कटने भी न पाया था तौक़-ए-गर्दन

अभी तो सदियों का पामाल था मेरा ख़िर्मन

उस पे इन वहशी-लुटेरों ने सियहकारों ने

मेरे अरमानों को ताराज क्या लूट लिया

मेरे मासूमों को बे-ख़ाना ओ बर्बाद किया

मेरी बहुओं से हवस-ख़ानों को आबाद किया

जल गया मेरा चमन लुट गया सब मेरी बहार

मेरे बरबत में कोई तार नहीं अब साबित

मेरी चीख़ों में कोई दर्द नहीं अब बाक़ी

मेरे प्यारो मिरी छाती से लिपटने वालो

आग वो दिल में लगी है कि मैं ही जानती हूँ

यूँ मिरी कोख जली है कि मैं ही जानती हूँ

मेरे बच्चो मिरी नामूस के पहरेदारो

देखो नेज़ों पे तुम्हारे हैं ये किस की लाशें

तुम ने ख़ुद लूट लिया अपनी ही बहनों का सुहाग

माँग में झोंक दी सिंदूर की जगह तुम ने आग

शर्म से अब तो हुई जाती है गर्दन मिरी ख़म

पानी पानी हुआ जाता है मुसव्विर का क़लम

ये तिरा बैत-ए-मुक़द्दस तिरी रिफ़अत का मज़ार

किस की मनहूस निगाहों का बना आज शिकार

क्या हुए मेरे वो मंसूबे वो ख़्वाब-ए-फ़र्दा

जल गया मेरा चमन लुट गई सब मेरी बहार

मेरे बरबत में कोई तार नहीं अब साबित

मेरी चीख़ों में कोई दर्द नहीं अब बाक़ी

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In Hindi By Famous Poet Wamiq Jaunpuri. is written by Wamiq Jaunpuri. Complete Poem in Hindi by Wamiq Jaunpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.