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अलिफ़ लैला - वामिक़ जौनपुरी कविता - Darsaal

अलिफ़ लैला

थक गई रात मसकने लगा ग़ाज़ा का फ़ुसूँ

सर्द पड़ने लगीं गर्दन में हमाइल बाँहें

फ़र्श बिस्तर पे बिखरने लगे अफ़्शाँ के चराग़

मुज़्महिल सी नज़र आने लगीं इशरत-गाहें

ज़िंदगी कितने ही वीरानों में दम तोड़ चुकी

अब भी मिलती हैं मगर ग़म की फ़सुर्दा राहें

जिस तरह ताक़ में जल बुझती हैं शम्ओं की क़तार

ज़ुल्मत-ए-शब में जगाती हुई काशानों को

बन के रह जाती है ता-सुब्ह पतंगों का मज़ार

ख़ून के हर्फ़ों में तहरीर है दीवारों पर

इन घिसटते हुए अज्साम के अम्बारों में

दर्द के रुख़ को पलट देने का मक़्दूर नहीं

फ़िक्र घबराई हुई फिरती है बाज़ारों में

उम्र इक सैल-ए-अफ़ूनत है बदर-रू की मिसाल

ज़ीस्त इक चा-ब-चा सड़ता हुआ गदला पानी

जिस से सैराब हुआ करते हैं ख़िंज़ीर ओ शग़ाल

वक़्त की जलती हुई राख से झुलसे हुए पाँव

की घनी छाँव में बैठे हुए दिल

कर्ब-ए-माज़ी के गिराँ बोझ से डूबी नब्ज़ें

लाख चाहें पे उभरने का गुमाँ ला-हासिल

एक मौहूम सी हसरत में जिए जाते हैं

नाम ही नाम मसर्रत का लिए जाते हैं

अपनी बे-ख़्वाब तमन्ना का फ़साना है यही

कल की शब और नई और नई शब होगी

ज़िंदगी होगी नई और कहानी भी नई

सब्र ऐ दोस्त कि ज़ुल्मत की घड़ी बीत गई

थक गई रात मसलने लगा ग़ाज़ा का फ़ुसूँ

सर्द पड़ने लगीं गर्दन में हमाइल बाँहें

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In Hindi By Famous Poet Wamiq Jaunpuri. is written by Wamiq Jaunpuri. Complete Poem in Hindi by Wamiq Jaunpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.