तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात
तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात
याद रहती है किसी साहिल पे तूफ़ानों की बात
वो तो कहिए आज भी ज़ंजीर में झंकार है
वर्ना किस को याद रह जाती है दीवानों की बात
क्या न थी तुम को ख़बर ऐ कज-कलाहान-ए-बहार
बू-ए-गुल के साथ ही फैलेगी ज़िंदानों की बात
ख़ैर हो मेरे जुनूँ की खिल गए सदहा गुलाब
वर्ना कोई पूछता ही क्या बयाबानों की बात
क्या कभी होती किसी की तू मगर ऐ ज़िंदगी
ज़हर पी कर हम ने रख ली तेरे दीवानों की बात
रिश्ता-ए-याद-ए-बुताँ टूटा न तर्क-ए-इश्क़ से
है हरम में अब भी ज़ेर-ए-लब सनम-ख़ानों की बात
हम-नशीं उस के लब ओ रुख़्सार हों या सैर-ए-गुल
तज़्किरा कोई भी हो निकलेगी मय-ख़ानों की बात
बज़्म-ए-अंजुम हो कि बज़्म-ए-ख़ाक या बज़्म-ए-ख़याल
जिस जगह जाओ सुनाई देगी इंसानों की बात
इब्न-ए-आदम ख़ोशा-ए-गंदुम पे है माइल-ब-जंग
ये न है मस्जिद का क़िस्सा और न बुतख़ानों की बात
फूल से भी नर्म-तर 'वामिक़' कभी अपना कलाम
और कभी तलवार हम आशुफ़्ता-सामानों की बात
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