नए गुल खिले नए दिल बने नए नक़्श कितने उभर गए
नए गुल खिले नए दिल बने नए नक़्श कितने उभर गए
वो पयम्बरान-ए-सद इंक़िलाब जिधर जिधर से गुज़र गए
जो शहीद-ए-राह-ए-वफ़ा हुए वो इसी ख़ुशी में मगन रहे
कि जो दिन थे उन की हयात के ग़म-ए-ज़िंदगी में गुज़र गए
अभी साथ साथ तो थे मगर मुझे मेरे हाल पे छोड़ कर
मिरे हम-जलीस कहाँ गए मिरे हम-सफ़ीर किधर गए
मिरी जुस्तुजू को फ़क़ीह-ए-शहर बता रहा है शरीक-ए-ज़हर
उसे क्या ख़बर कि दिमाग़ ओ दिल यही ज़हर खा के निखर गए
अरे ओ अदीब-ए-फ़सुर्दा-ख़ू अरे ओ मुग़न्नी-ए-रंग ओ बू
अभी हाशिए पे खड़ा है तू बहुत आगे अहल-ए-हुनर गए
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