फ़नकार के काम आई न कुछ दीदा-वरी भी
फ़नकार के काम आई न कुछ दीदा-वरी भी
करना पड़ी शहज़ादों को दरयोज़ा-गरी भी
इक सिलसिला-ए-दार-ओ-रसन फैला हुआ है
मिंजुमला ख़ताओं के है साहब-नज़री भी
जिन हाथों ने फाड़े न कभी जेब ओ गरेबाँ
उन हाथों से हो सकती नहीं बख़िया-गरी भी
उन से तो बहर तौर हर इक राहज़न अच्छा
जो राहज़नी करते हैं और राहबरी भी
जब इल्म हो सूरत-गर-ए-मश्शाता-ए-दोज़ख़
फ़िरदौस है आदम के लिए बे-ख़बरी भी
जब सर से गुज़र जाता है तलवार का पानी
सर थाम के रह जाती है बेदाद-गरी भी
'वामिक़' तुझे यारों से जो बेगाना बना दे
इक साग़र-ए-बे-कैफ़ है वो नामवरी भी
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