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दीवाने दीवाने ठहरे खेल गए अँगारों से - वामिक़ जौनपुरी कविता - Darsaal

दीवाने दीवाने ठहरे खेल गए अँगारों से

दीवाने दीवाने ठहरे खेल गए अँगारों से

आबला-पाई अब कोई पूछे इन ज़ेहनी बीमारों से

बात तो जब है शोले निकलें बरबत-ए-दिल के तारों से

शोर नहीं नग़्मे पैदा हों तेग़ों की झंकारों से

किस ने बसाया था और उन को किस ने यूँ बर्बाद किया

अपने लहू की बू आती है इन उजड़े बाज़ारों से

कैसे गले मिलते हैं गले से अब के बहाराँ भूल गए

यारों ने भरपूर गलों का काम किया तलवारों से

कह दो मुग़न्नी से अब ठहरे ख़्वाब-आवर नग़्मे रोके रोके

कोई हमें ललकार रहा है पर्बत से मीनारों से

शाह का रुख़ है उतरा उतरा शह क्या देता है शातिर

हारी बाज़ी जीत गए हम पैदल से राह-वारों से

वक़्त के तूफ़ानी धारों में कितने साहिल डूब गए

नित नए साहिल फिर उभरे हैं इन तूफ़ानी धारों से

पल में तोला पल में माशा पल में सब दरहम बरहम

ज़र्रा-ए-ख़ाकी नज़रें मिलाए बैठे हैं सय्यारों से

पत्थर का दिल पानी पानी ज़िंदाँ की तारीख़ों पर

आज तलक रह रह कर चीख़ें उठती हैं दीवारों से

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In Hindi By Famous Poet Wamiq Jaunpuri. is written by Wamiq Jaunpuri. Complete Poem in Hindi by Wamiq Jaunpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.