वक़्त-ए-रुख़्सत शबनमी सौग़ात की बातें करो
वक़्त-ए-रुख़्सत शबनमी सौग़ात की बातें करो
ज़िक्र अश्कों का करो बरसात की बातें करो
अपनी मिट्टी का भी तुम पर हक़ है समझो तो सही
चाँद सूरज की नहीं ज़र्रात की बातें करो
ख़ून-ए-इंसाँ से हुई है सुब्ह जिस की दाग़-दार
चंद ही लम्हे सही उस रात की बातें करो
कब तलक उलझी रहेगी ज़ुल्फ़-ए-जानाँ में ग़ज़ल
दोस्तो कुछ आज के हालात की बातें करो
मौसम-ए-गुल में अगर करनी हों कुछ बातें 'वली'
फूल की ख़ुशबू की और नग़्मात की बातें करो
(816) Peoples Rate This