साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट
साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट
इक हमीं से रखे है दिल में कपट
चंगुल-ए-बाज़ हैं तिरी मिज़्गाँ
ताइर-ए-दिल को पल में ले है झपट
तेरी इस वज़-ए-दिल-रुबाई से
घर के घर हो गए हैं चूड़-चपट
वो भी दिन फिर दिखाएगा अल्लाह
रात को सोए तू गले से लिपट
पास जब ग़ैर को बिठाता है
जाए है दिल तिरे मिलाप से हट
देते हो बात बात में बाज़ी
एक हो अपने काम के नट-खट
नाज़ की तेग़ ग़ैर पर मत खींच
दिल हमारा कहीं न जावे कट
जिस तरह चाँद पर हो अब्र-ए-सियाह
ज़ुल्फ़ यूँ मुखड़े पर रही है उलट
ईद है आज आ गले मिल लें
दुश्मनों की तो जाए छाती फट
ग़म में तेरे हैं अश्क यूँ जारी
हर घड़ी जिस तरह चले है रहट
इश्क़ वो घर है जिस के शाह-ओ-गदा
बा-अदब चूमते रहे चौखट
कुल्ले-शय-इन-मुहीत की तक़रीर
खट से इंसान के हुए परघट
दिल-ए-बेचारा इक तन-ए-तन्हा
फ़ौज-ए-ग़म आए है तमाम सिमट
दोस्त की हो मदद तो यक दम में
जाए ये मा'रका तमाम पलट
याँ क़दम राह पर सिवाए न रख
ऐ 'मुहिब' राह इश्क़ की है बिकट
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