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सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए - वलीउल्लाह मुहिब कविता - Darsaal

सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए

सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए

सदफ़ के मौज-ए-तबस्सुम ने कान खोल दिए

तिरी नसीम-ए-तबस्सुम ने ग़ुंचा साँ दिल के

जो उक़दे बंद थे आनान-फ़ान खोल दिए

सरिश्क-ए-चश्म ने कर शहर-ए-बंद-ए-दिल को ख़राब

तमाम इश्क़ के राज़-ए-निहान खोल दिए

ये किस की काविश-ए-मिज़्गाँ ने दिल से ता-सर-ए-चश्म

हज़ार चश्मा-ए-आब-ए-रवान खोल दिए

चमन चमन तिरे आरिज़ के रंग-ए-हसरत ने

ब-चश्म-ए-गुल मिज़ा-ए-ख़ूँ-चकान खोल दिए

निकालूँ दिल से मैं नाले की किस तरह आवाज़

तिरी निगह ने अजब सुर्मा-दान खोल दिए

हवा-ए-ख़ाक-नशीनी ने बे-ग़ुबार 'मुहिब'

नज़र में पर्दा-ए-हफ़्त-आसमान खोल दिए

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In Hindi By Famous Poet Waliullah Muhib. is written by Waliullah Muhib. Complete Poem in Hindi by Waliullah Muhib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.